राहुल गाँव के पहाड़ी इलाके में एक छोटे से घर में रहता था। उसका परिवार बहुत ही गरीब था। हल चलाना और पशुओं की देखभाल करना उसके पिता का रोज़ का काम था और माँ घर के काम निबटाती। मेहनत भरे दिनों में भी राहुल शाम को ढलते सूरज के साथ आराम नहीं करता, बल्कि कच्चे मैदान में बैठ कर किताब पढ़ा करता।
उसके पिता खेतों में मजदूरी करके घर लाने की मुश्किल समझते थे, पर राहुल हार मानने वालों में से नहीं था। माँ उसे गोद में बिठाकर उन कहानियों को सुनाया करती थी, जिसमें गरीबी की लड़ाई लड़ कर लोग ऊँचा मुकाम पा चुके थे। इन कथाओं ने राहुल के हौसलों को मजबूत किया और उसने बचपन में ही एक नई दुनिया के सपने देखना शुरू कर दिया था।
रात को छत पर तारों को निहारते हुए राहुल ने खुद से वादा किया था कि वह अपनी मेहनत से सभी बाधाओं को पार करेगा।
एक दिन पिताजी ने मुस्कुरा कर कहा, “राहुल, इस कच्चे बिस्तर पर आराम कर ले।” राहुल ने जवाब दिया, “पिताजी, जब तक मुझे कॉलेज की डिग्री नहीं मिल जाती, तब तक मैं कहीं आराम नहीं करूँगा।” उन शब्दों ने पिताजी के चेहरे पर गर्व की रेखा छोड़ दी।
उस रात राहुल ने अपने छोटे भाई सुधीर को गोद में बिठाकर भी पुस्तकें पढ़ने की शुरुआत कर दी। उसने सुधीर से कहा, “भाई, हमारे लिए पढ़ाई सबसे बड़ा धन है, इसे छोड़ना नहीं।” सुधीर ने राहुल का हाथ थामा और दोनों ने मिल कर अगले दिन फिर से नए उत्साह के साथ पढ़ाई शुरू की।
पढ़ाई की राह में मुश्किलें
राहुल ने गाँव की एकलौती प्राथमिक पाठशाला से पढ़ाई शुरू की। स्कूल पहुँचने के लिए उसे हर रोज़ चार किलोमीटर चलना पड़ता था, लेकिन गरीबी ने उसे पीछे नहीं रहने दिया। एक दिन शिक्षक ने कहा, “हर कोई पैसे दिखाकर अच्छा बन सकता है, लेकिन मेहनत को कोई खरीद नहीं सकता। आपको भी मेहनत करनी होगी।” उस क्षण राहुल के भीतर जल उठी निराशा को उम्मीद ने मिटाया नहीं; उसने आँखों में विश्वास का उजाला कायम रखा।
राहुल के साथी साफ कपड़े पहन कर आते थे, जबकि उसके पुराने धोती-कुर्ता पर मिट्टी की परत जम चुकी होती थी। एक बार परीक्षा में उसने सर्वश्रेष्ठ अंक हासिल किए, फिर भी उसके पास नए जूते नहीं थे। सहपाठी उसके जूतों को देख चिल्लाए, पर राहुल ने मुस्कुराते हुए उनकी बातों को हवा में उड़ा दिया। हौसला उसके भीतर ऐसा प्रबल था कि उसे यकीन था मेहनत का फल कभी खाली नहीं जाता।
आर्थिक कठिनाइयाँ
पैसों की कमी राहुल के लिए लगातार चुनौती बनी रही। एक बार उसकी किताबें पुरानी हो गईं और नए किताब खरीदने के लिए पिता के पास पैसे नहीं थे। उसने गाँव के पुस्तकालय की सदस्यता ली, ताकि वह पुरानी किताबें पढ़कर पढ़ाई जारी रख सके।
हिसाब-किताब के लिए कॉपी खरीदने तक के पैसे जुटाना मुश्किल था। कभी-कभी दोपहर का भोजन भी वह बस एक रोटी और पानी तक सीमित रख लेता था, ताकि बचाए हुए पैसे किसी नई किताब पर खर्च कर सके। उसके स्कूल लौटते दोस्त उसे खाने के लिए मना करते, लेकिन राहुल कहता, “भोजन से ज़रूरी है ज्ञान की भूख।”
इन आर्थिक तंगी और मुश्किल हालातों से जूझते हुए भी राहुल ने शिक्षा का महत्व समझा और बिना विलाप के लगातार आगे बढ़ता रहा।
पराजय का क्षण
तहसील कार्यालय के फहराए बोर्ड पर राहुल ने अपना रोल नंबर ढूंढ़ा, लेकिन वहाँ एक भी पास अंक नहीं दिखे। दिल के भीतर कुछ टूट सा गया और आँसुओं ने आँखों को नम कर दिया। “माँ, मैं फेल हो गया हूँ,” राहुल ने अँधेरे से घिरी माँ से डरती हुई आवाज़ में सच बताया।
माँ ने राहुल को गले लगाकर कहा, “बेटा, गिर कर भी उठना ही जीवन का हिस्सा है। हार मानने का सवाल ही नहीं है, हम सब साथ हैं।” पिता की निराशा भरी आँखों ने भी थोड़ा साहस दिया। पिता ने राहुल का हाथ पकड़ते हुए कहा, “बेटा, ये हार नहीं है, बस जीवन का एक पड़ाव है। मैं जानता हूँ कि तुम ज़रूर उठोगे और दिखाओगे।”
गाँव के लोग कहते रहे, “इतनी गरीबी, इतनी मुश्किलें, फिर भी पढ़ने की कोशिश?” पर राहुल ने उनकी बातों को अनसुनी कर दिया। उसने अपने आँसुओं के बीच एक नए इरादे की चिंगारी को जगमगाते पाया।
प्रेरणा की चिंगारी
दूसरी सुबह राहुल ने नींद नहीं ली। माँ ने गरम दालिया बना कर रखी थी, पर वह अनमना ही बैठा रहा। तभी स्कूल की पुरानी शिक्षिका सीमा दीदी अचानक आ पहुंची। उनकी आँखों में विश्वास की चमक देखकर राहुल का मन थोड़ा हल्का हुआ।
सीमा दीदी ने राहुल को पास बुलाया और कहा, “तुम्हारे माता-पिता ने मेहनत का एक पक्का पुल बनाया है, और तुम्हें उसे सिर्फ मोमबत्ती की तरह कमजोर नहीं समझना है। तुम्हारे भीतर ज्ञान की भूख है, उसे जगाओ और मेहनत से अपना रास्ता बनाओ।” राहुल की आँखों में उम्मीद की किरण जगमगाने लगी। सीमा दीदी ने बताया कि कैसे गाँव का एक लड़का कड़ी मेहनत करके इंजीनियर बनकर विदेश की ऊँची इमारतों पर नाम लिख चुका है।
राहुल ने ठान लिया कि वह सीमित संसाधनों को अपनी कमजोरी नहीं बनने देगा। “मैं फिर से कोशिश करूंगा,” उसने खुद से कहकर मन को शक्ति दी। माँ ने राहुल को विश्वास दिलाया कि पूरा घर-गाँव उसकी सफलता का इंतजार कर रहा है। पिता ने हाथ बढ़ा कर कहा, “हमारे सपनों का सूरज है तू, उसे कभी ढलने न देना।” इन शब्दों ने राहुल के आत्मविश्वास को फिर से पंख दिए।
मेहनत का फल
राहुल ने हर दिन पढ़ाई में समय लगा दिया। सुबह की रौशनी में वह चुपचाप खेत की मिट्टी पर बैठता और किताबों को पलटने लगता। खेतों में काम करके भी उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी। दिन में पाठशाला जाता, घर लौटकर खेतों में काम करता, रात में दिए की रौशनी में गणित के सवाल हल करता रहा।
एक दिन पिता ने नए अख़बार के पन्ने पर छपा रिजल्ट दिखाते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारे अंक बहुत अच्छे हैं।” राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा, “पिताजी, मेहनत के बिना फल नहीं मिलता।” माँ भी आँसुओं भरे चेहरे से खुश हो उठी, “मैंने तुम्हें पहचाना था, मेरे लाल।” गाँव में त्योहार जैसा आनंद फैल गया।
राहुल ने आगे की चुनौतियाँ स्वीकार कर लीं। उसने सरकारी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी शुरू की और रोज़ पुराने पेपर हल किए। संघर्ष की रातें गुज़रती रहीं, पर हर सुबह उसके आत्मविश्वास में नई ऊर्जा भर देती थी।
सफलता की उड़ान
अगले वर्ष के लोक सेवा आयोग के परिणाम का दिन राहुल के लिए बड़े उत्साह का था। उसने पूरी लगन से तैयारी की थी और अब परिणाम की घड़ी आ गई थी। बोर्ड पर पूरे जिले के अभ्यर्थियों के नंबर लिखे गए थे, राहुल ने अपना नाम देखा और खुशी से आँखें चमक उठीं — उसका प्रथम स्थान था!
झट से तालियाँ बज उठीं, “मैं कर दिखाया!” राहुल चिल्लाया। माँ ने उसे गले लगाकर कहा, “बेटा, तुम्हें पाकर हमें गर्व है।” पिता की आँखों में आँसू थे, उन्होंने गर्व से कहा, “ये सम्मान तुम्हारा है बेटा, तुम्हारी मेहनत और हौसलों की उड़ान ने सबको चकित कर दिया।” गाँव में खुशी का माहौल बन गया। राहुल का दिल गर्व और कृतज्ञता से भर उठा।
राहुल अब तैयार था नई उड़ान भरने के लिए। उसने ठान लिया कि वह पढ़-लिखकर सिर्फ अपने लिए नहीं, अपने गाँव और समाज के लिए भी कुछ करेगा। एक दिन वह अपने गाँव के स्कूल में गया और बच्चों से बोला, “याद रखो, जीत उसी की होती है जिसके इरादे अटल होते हैं।” उसकी इन बातों को सुनकर कई बच्चों के चेहरे पर उम्मीद की मुस्कान खिल उठी। उसकी कहानी ने गाँव के हर युवा को यह संदेश दिया कि हौसलों की उड़ान कभी नाकामयाब नहीं होती।