जीवन परिचय:
हमीरजी गोहिल एक युवा राजपूत योद्धा थे, जिनका नाम सोमनाथ मंदिर की रक्षा के लिए किए गए उनके अदम्य बलिदान से जुड़ा है। गोहिल राजवंश से संबंध रखते हुए, वे आर्थीला (हाथीला) जिले के शासक भीमजी गोहिल के सबसे छोटे पुत्र थे कथानुसार, हमीरजी वीरता के साथ बड़े हुए और लगभग किशोरावस्था में ही कुशल तीरंदाज एवं तलवारबाज बन गए। कहा जाता है कि वे अपने परिवार, विशेषकर बड़े भाई दुडोजी की पत्नी (भाभी) से प्रेरित होकर धर्म-रक्षा के लिए लड़ने का संकल्प लिया। कुछ लोककथाओं में उनकी आयु घटना के समय मात्र १६ वर्ष बताई जाती है, पर ऐतिहासिक स्रोतों में उनकी सटीक जन्मतिथि नहीं मिलती। विवाह के ठीक बाद उन्होंने सोमनाथ मंदिर की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए|
वंश और परिवार का इतिहास:
हमीरजी गोहिल गोहिल राजपूत कुल से ताल्लुक रखते थे, जिनका पूर्वज आंध्रप्रदेश के गाथाराम राजपूतों में मिलता है। गुलामी पूर्वी सौराष्ट्र में गोहिलों का मुख्य अधिपत्य था। ब्रिटिश शासनकाल के कैथियावाड़ गजटियर में उल्लेख है कि हथिला (अरथीला) क्षेत्र वर्षों तक लाठी गोहिलों की राजधानी था। हमीरजी के पिता भीमजी गोहिल ने धारी के चूडासामा राजपरिवार से विवाह किया था। भीमजी के तीन पुत्र हुए – सबसे बड़े दुडोजी (जो पिता के बाद राज्य संभाला), बीच में अर्जनजी और सबसे छोटे हमीरजी। इनके अलावा भीमजी की एक पुत्री (उन्मेवी) जूनागढ़ के राजकुमार रा मंडलिक से विवाह करके चली गई। दुडोजी की नेतृत्व क्षमता के बावजूद चूड़ासामा से संबंधों और स्थानीय राजनीति के कारण बाद में गोहिल परिवार के अधिकांश लोग आर्थीला (हाथीला) को छोड़कर लाठी चले गए, जो तब से गोहिल गोत्र का नया केन्द्र बन गया। इस प्रकार हमीरजी गोहिल का परिवार सौराष्ट्र के प्रतिष्ठित गोहिल राजवंश का हिस्सा था, जिसके अन्य प्रमुख सदस्य मध्ययुगीन गुजरात में अलग-अलग समय पर सुर्खियाँ बटोरते रहे।
शासनकाल और प्रमुख उपलब्धियाँ:
हमीरजी गोहिल ने लंबे समय तक शासन नहीं किया क्योंकि वे छोटी अवस्था में ही वीरगति को प्राप्त हो गए। उन्हें और उनके बड़े भाई को पिताजी द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों का प्रभार मिला था; किंतु हमीरजी की प्रमुख उपलब्धि उनके शौर्य और धर्म की रक्षा में दिखी। ऐतिहासिक रूप से उनका योगदान मुख्यतः सोमनाथ मंदिर की सुरक्षा हेतु किए गए बलिदान तक सीमित है। वे अपने वंश के लिए क्षत्रिय मर्यादा का उदाहरण बने, जिनका जीवन-उपलब्धि धर्म की रक्षा ही मानी जाएगी।
युद्ध, संघर्ष और बलिदान:
सोमनाथ मंदिर के खंडहर, जिसे महमूद गजनवी और अलाउद्दीन खिलजी जैसे आक्रांताओं ने कई बार लूटा और ध्वस्त किया गया। इस मंदिर की प्रसिद्धि ने सोमनाथ की रक्षा के लिए किए गए हमीरजी के बलिदान को भी गौरवपूर्ण बना दिया है।
सोमनाथ मंदिर सदियों से हिंदुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। बॉम्बे गजटियर के अनुसार, 1398 ई॰ में जब यह तीर्थ “जगतविख्यात” मंदिर अपने तीसरे पुनर्निर्माण के बाद प्रतिष्ठित शिखर पर था, उस समय दिल्ली सल्तनत के सरदार जुफ़र खान ने यहाँ आक्रमण किया। इस अभियान के दौरान सोमनाथ मंदिर की पुनः तोड़फोड़ हो गई और कहा जाता है कि इस लड़ाई में हमीरजी गोहिल और उनके सहयोगी वेगादो भील अपने धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हुए। स्थानीय गाथाओं के अनुसार, वे उस दिन तुलनीय साहस दिखाने वाले केवल योद्धा थे जिन्होंने मुस्लिम सेना को ललकारा।

कहानी के अनुसार जब हमीरजी को सोमनाथ पर आक्रमण की खबर मिली, तब वे अपने घर में विद्यमान थे। उनके बड़े भाई दुडोजी की पत्नी ने उन्हें चिढ़ाते हुए कहा, “अगर क्षत्रिय कुल का और कोई असली अंग नहीं बचा है, तो तुम गोहिल हैं और बहादुर हो, फिर घर में बैठे क्यों हो?”। इस व्यंग्य से आहत होकर हमीरजी ने तुरंत सोमनाथ की ओर प्रस्थान कर दिया। रास्ते में वे गिर के दक्षिण में स्थित द्रोन-गढ़रा नामक स्थान पहुँचे, जहाँ उन्होंने वेगादो भील के घर विश्राम किया। वहाँ पता चला कि वेगादो भील अपने को विधवा बता चुके हैं और उनके पास एक अविवाहित पुत्री है। युद्ध में शहीद होने से पहले ही संतानहीन मर जाने से बचने के लिए उन्होंने पहले विवाह करने की शपथ ली। वेगादो की प्रेरणा पर हमीरजी ने उसी स्थान पर उस युवती से विवाह किया।
शादी के कुछ दिनों बाद हमीरजी और वेगादो दोनों सोमनाथ मंदिर की रक्षा हेतु आगे बढ़े। प्राप्त परंपरा के अनुसार दोनों ने अंतिम प्रहार तक डटकर मंदिर की रक्षा की, पर भारी संख्या में सैनिकों से घिरकर वे वीरगति को प्राप्त हुए। उनके इस बलिदान ने सोमनाथ की रक्षा की आखिरी कड़ी के रूप में ऐतिहासिक स्मृति में जगह बनाई। “हमीरजी गोहिल ने अपने धर्म की रक्षा के लिए मृत्यु को आलिंगन किया,” ऐसे वाक्य स्थानीय ऐतिहासिक लेखनों में बेशुमार हैं।
हमीरजी गोहिल का ऐतिहासिक महत्व
हमीरजी गोहिल को भारतीय मध्यकालीन इतिहास में गोपनीय लेकिन प्रेरणादायक वीरगाथा का प्रतीक माना जाता है। सोमनाथ मंदिर की रक्षा में उनके बलिदान को राजपूत धर्मरक्षा के आदर्श के रूप में देखा गया है। इतिहास एवं स्थानीय गाथाओं में वे “धर्म के लिए लड़ने वाले वीर” के रूप में उभरे हैं। उनके संघर्ष से प्रेरित होकर गुजरात और सौराष्ट्र के अन्य राजपूतों में भी अकाट्य साहस की भावना जागृत होती रही। गोहिलवंशीय योद्धा के रूप में हमीरजी ने उस युग के भारत-मुस्लिम युद्धों में एक सूक्ष्म किंतु प्रभावशाली भूमिका निभाई। उनके बलिदान से स्थानीय लोग यह विश्वास रखते हैं कि “एक क्षत्रिय के रूप में कर्तव्य यही है, चाहे जीवन भी न्योछावर करना पड़े”।
निजी रूप से तो उनका शासन अथवा व्यापक विजय नहीं था, पर उनकी कहानी ने हिन्दू धर्म-स्थलों के प्रति कटिबद्धता का ऐतिहासिक उदाहरण पेश किया है। सोमनाथ मंदिर की पुनःस्थापना की नींव उन्हीं त्यागों पर टिकी है जिन्हें हमीरजी ने अपने साथियों के साथ अंकित किया। इसलिए उन्हें केवल एक वीर सैनिक नहीं, बल्कि धर्म-रक्षा के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है।
उनकी विरासत और स्मृति
आज भी सोमनाथ मंदिर परिसर के मुख्य द्वार के समीप हमीरजी गोहिल की एक विशाल अश्वारोही प्रतिमा स्थापित है, जिसे श्रद्धा के साथ नमन किया जाता है। यह स्मारक उनके पराक्रम और बलिदान का प्रतीक है, जो लोक श्रद्धा में वीरता की प्रेरणा बनकर जीवित है। उल्लेखनीय है कि भारतीय एंटिक्वैरी (1876) जैसी ऐतिहासिक पत्रिकाओं में भी उनकी वीरगाथा अंकित रही है। स्थानीय स्मरण में उनका नाम आज भी एक गौरवपूर्ण स्थान रखता है, जिससे भक्तगण मंदिर खोलते समय हाथ जोड़कर उनका सम्मान करते हैं। हालाँकि सोमनाथ मंदिर के मुख्य ध्वजारोहण में उनकी भूमिका का कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन विश्वास है कि उनकी प्रतिमा के सम्मुख माँगी गई प्रतिज्ञाएँ आज भी श्रद्धालुओं द्वारा मान्य मानी जाती हैं।
उनके परिवार की वंशावली आज भी सौराष्ट्र में विद्यमान है। कहा जाता है कि हमीरजी की विधवा से जन्मे पुत्र के वंशज नागर और बहारिद्वाद क्षेत्र में गोहिल “खांत” के नाम से रहते हैं। इस प्रकार उनके परिवार की स्मृति आज भी जीवित है। हमीरजी की वीरता पर लिखे गए लोकगीत और गाथाएं सदियों से प्रचलित हैं। इन लोककथाओं में उन्हें हमेशा सोमनाथ की रक्षा के लिए स्वयं को समर्पित करने वाला वीर बताया गया है। उनकी कहानी को प्रेरणास्रोत मानकर गुजराती कवि मेघानी, कलापी आदि ने भी कविताएँ की हैं (इसके फिल्मी रूपांकन तक हो चुका है)। अंततः, हमीरजी गोहिल की किंवदंती और त्याग की याद आज भी जीवंत है, जो साहस और धर्मपरायणता के प्रतीक के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी संजोई जा रही है।
उल्लेखनीय तथ्य और लोककथाएँ
- † प्रेरणादायी मुहावरा: लोकश्रुति है कि हमीरजी गोहिल ने सोमनाथ की रक्षा के लिए कहा था ‘सोमनाथ नी सखाते’ (मतलब “सोमनाथ की रक्षा”), जो उनकी दृढ़ता का परिचायक माना जाता है। यह वाक्य क्षेत्रीय लोकगीतों में आज भी गूंजता है।
- † अचानक विवाह: मंदिर में प्रवेश से पूर्व वीरराज् हमीरजी को उनके मित्र वेगादो भील ने विवाह हेतु प्रोत्साहित किया था। उन्होंने अपने धर्म की रक्षा करने से पहले विवाह करके संतानोत्पत्ति की शपथ ली था।
- † वंशज गोहिल-खांत: परंपरा है कि उनकी विधवा ने एक पुत्र को जन्म दिया, और उनका वंश आज भी नागर तथा बहारिद्वाद में गोहिल खांत के रूप में मौजूद है। इस तथ्य ने उनकी वीरगाथा को ऐतिहासिक रूप से जोड़कर रखा है।
- † लोककथात्मक चित्रण: स्थानीय कथाओं में हमीरजी की सहचरिता और पराक्रम गाया जाता है। उनके साथी वेगादो भील तथा सोमनाथ की रक्षा के क्रम में वीरांगना भाव को प्रस्तुत करने वाली कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। उनके बलिदान को लेकर कई अमोघ लोकगीत और भजन बनकर पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित हुए हैं।
इन तथ्यों और कथाओं ने हमीरजी गोहिल की याद को समय से परे प्रस्फुटित रखा है। उनकी आत्म-समर्पित वीरगाथा सौराष्ट्र के लोकजीवन में श्रद्धा और गौरव के साथ जीवित है, जो उनके शौर्य एवं बलिदान का शाश्वत स्मारक बनकर खड़ी है।