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माँ के आँचल में सपनों की उड़ान

हर जीवन की सबसे पहली गुरु और मार्गदर्शक होती है माँ। बचपन में जब कदम-कदम पर अँधेरा छाया हुआ हो, तब माँ की ममता की रोशनी ही हमें साहस देती है। उसके हाथों में सिखाए गए संस्कार, उसके प्यार की छाँव में पल्लवित होते हुए हमारे सपने हमें जीवन की राह दिखाते हैं। माँ के प्रेम और समर्पण को शब्दों में पिरोना कठिन है, क्योंकि उसका हर एहसास अनमोल है। उसके बिना यह दुनिया अधूरी सी लगती है।

मदर्स डे (मातृ दिवस) भी इसी भावना का ही उत्सव है। विश्व के कई देशों में हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है, ताकि हम उस निस्वार्थ प्रेम और त्याग को याद कर सकें, जो माँ ने हमें दिया है। व्यस्त जीवन की दौड़ में हम कभी-कभी अपनी माँ को धन्यवाद देना भूल जाते हैं। इसलिए यह विशेष दिन हमें याद दिलाता है कि हमें माँ को नित्य अपना आभार और सम्मान जताना चाहिए, क्योंकि माँ की हर मुस्कान, हर सीख और हर आशीर्वाद हमारे जीवन का आधार है। मदर्स डे सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि वह अवसर है जब हम माँ के प्रति अपना सम्मान और प्यार विशेष रूप से जताते हैं।

भारतीय संस्कृति में मूल रूप से मातृ पूजा की परंपरा रही है। मातृ दिवस मूलतः पश्चिम में आरंभ हुआ, पर विश्व की बहुप्रिया भावनाएँ इसे आसानी से अपना लेती हैं। इस अवसर पर लोकगीत, फिल्में और कविताएँ भी माँ की महिमा गुनगुनाती हैं। उदाहरण के लिए मशहूर गीतों में गुलज़ार ने लिखा है – “तुझ में रब दिखता है, यारा मुझे सांभलता है”, जो माँ के अस्तित्व में ईश्वर रूप को प्रस्तुत करता है। सिनेमा की दुनिया में ‘मदर इंडिया’ जैसी फिल्म ने माँ के अटूट त्याग को सांस्कृतिक धरोहर बना दिया। मदर्स डे मनाने का उद्देश्य सिर्फ एक दिन को उत्सव बनाना नहीं है, बल्कि अपनी जिम्मेदारियों की याद दिलाना है।

माँ के विभिन्न रूप और जीवन में उनका योगदान

माँ केवल खून की रिश्तेदारी भर नहीं, बल्कि अपने आप में एक आदर्श है। भारतीय समाज में माँ को कई देवी-रूपों में पूजा गया है – दुर्गा, गौरी, शारदा इत्यादि। इन सभी रूपों में माँ ने प्रेम, करुणा और शक्ति का प्रतीक बनकर बच्चों का मार्गदर्शन किया है।

माँ घर की रसोई से लेकर समाज तक हर जगह योगदान देती है। वह पालनहार होती है, जो जन्म से लेकर बड़े होने तक भरण-पोषण की जिम्मेदारी निभाती है। वह शिक्षिका होती है, जो अपने अनुभव और संस्कारों से हमें जीवन की सीख देती है। संकट के समय वह रक्षक बन जाती है और अपने साहस से पूरे परिवार को सुरक्षित रखती है। छोटी-छोटी बातों में भी माँ प्रेरणा स्रोत बनकर हमें आगे बढ़ने की हिम्मत देती है।

माँ का योगदान केवल परिवार में ही नहीं दिखता। भारतीय संस्कृति में ‘माँ’ शब्द का रूप विस्तृत है। हम अपने देश को ‘माँ भारती’ कहकर सम्मान देते हैं, और देवी-देवताओं के रूपों में भी माँ को शक्ति-स्वरूप देवी माना जाता है। इन सभी स्वरूपों में माँ ने हमें प्रेम, संस्कार और आत्मीयता की भावना दी है।

  • पालनहार (नर्स): माँ हमें जन्म के बाद संभालती है और भरण-पोषण की जिम्मेदारी उठाती है।
  • शिक्षिका (गुरु): वह हमारे जीवन को दिशा देने वाले संस्कार और ज्ञान प्रदान करती है।
  • रक्षक (सुरक्षाकवच): विपदा के समय माँ की ममता और साहस पूरे परिवार को सुरक्षित रखती है।
  • दोस्त (साथी): माँ अपने बच्चे की पहली मित्र होती है, जो हर परिस्थिति में उसका साथ देती है।
  • प्रेरणा स्रोत: माँ के त्याग और संघर्ष की कहानियाँ हमें जीवन में चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत देती हैं।

इस प्रकार माँ के ये विविध रूप हमारे जीवन को पूर्णता देते हैं और हर रूप में उनका योगदान अमूल्य है।

माँ के त्याग और निस्वार्थ प्रेम की कहानियाँ

एक छोटे से गाँव की बात है, जहां सुनीता नाम की एक माँ अपने दो बच्चों के साथ रहती थी। पति की अनजान राहों में खो जाने के बाद उसने अपने बच्चों को पढ़ाने और बड़ा करने की जिम्मेदारी खुद ले ली थी। सुबह से पहले उठकर खेतों में काम करती और दोपहर में लौटकर थके-हारे दोनों बच्चों के गीले कपड़े सुखाकर स्कूल भेजती। शाम होते ही वह बाजार से किराने का सामान लाती, खाना बनाती और बच्चों की पढ़ाई में उनकी मदद करती। पूरे दिन की थकान मिटने पर भी वह बच्चों को कहानी सुनाती और उन्हें सपने देखने की हिम्मत देती।

कभी-कभी पैसे की तंगी भी हो जाती थी, क्योंकि उसने भोजन पर कुछ बचत करके बच्चों की किताबें और बैग खरीद लिए थे। अपने बेटे की स्कूल की पहली परीक्षा के समय उसके पास बस दो रुपए बचे थे, जो उसने अपनी भूख मिटाने की बजाय बेटे की किताबों पर खर्च कर दिए थे। परीक्षा के दिन बेटे को नया किताब और स्टेशनरी मिली, जिसे देखकर उसकी आँखें भर आईं और वह झुककर माँ के चरण छूने लगा। माँ की बाँहों में गिरते ही बेटा चौंक गया, उसे फुर्सत ही नहीं थी कि खुद कुछ खाए, बस माँ के आँचल को कस लिया। उस रात माँ ने प्यार से बेटे की छोटी उँगली पकड़कर उसे सुलाया। रात भर उसने अपने बेटे की हर साँस महसूस की, और बेटा चैन की नींद सोता रहा। जब सुबह हुई, बेटे की झिलमिलाती आँखों में मुस्कान थी और उसने हँसते-हँसते कहा, “मेरे बच्चे, तुम्हारी हर खुशी में मेरी खुशी है।”

सुनीता की यह कहानी माँ के त्याग और निस्वार्थ प्रेम की ऐसी मिसाल है, जो हर माँ के दिल में रहती है।

दूसरी कहानी है प्रिया की, जो मुंबई की ऊँची इमारतों और भीड़-भाड़ वाली गलियों में रहती थी। उसके पिता ने परिवार को छोड़ दिया था और उसी दिन से प्रिया ने अपनी माँ को सहारा देने का संकल्प कर लिया था। प्रिया पढ़ाई के साथ-साथ कपड़ों पर सिलाई का काम किया करती थी, जिससे थोड़ी-बहुत आमदनी हो जाती थी। माँ सुबह-सुबह उठकर रोटी और चाय बनाती, फिर प्रिया को स्कूल भेजने के बाद बर्तन धोने और झाड़ू-पोंछा जैसे घरेलू काम निपटाती। शाम को प्रिया साड़ी पर सिलाई करती और माँ खाना तैयार करती। इस तरह दोनों ने मिलकर घर का सारा काम बाँटा और अपनी खुशियों को सँजोया।

प्रिया को याद है कि जब उसने पहली बार पैर चलना सीखा था, तब उसकी माँ पास में खड़ी गर्व और प्यार भरी निगाहों से उसे देख रही थी। बार-बार गिरने पर भी वह हर बार माँ की मुस्कान देखकर उठ जाया करती थी। एक बार उसने स्कूल की परीक्षा में एक अंक नहीं पाने की वजह से उदास हो गई थी, मगर माँ ने उसे डाँटने की बजाय गले से लगा लिया और कहा, “गलती करना कोई बड़ी बात नहीं है, हिम्मत है तो अगली बार और बेहतर करना।” उस दिन प्रिया की आँखें चमक उठीं और उसने मन ही मन कसम खाई कि वह अगले अंक जरूर हासिल करेगी।

समय के साथ प्रिया बड़ी होती गई और उसने आईएएस की तैयारी शुरू की। माँ ने भी उसके हर सपने को पूरा करने की कसम खाई थी। दिन-रात मेहनत करने के बाद प्रिया ने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली, और जब उत्तराखंड में वह युवा अधिकारी बनी, तो अपनी पहली सेलरी माँ को अर्पित की। माँ ने बेटी की सफलता पर खुशी से आँसू बहाए और कहा, “आज यही माँ का सपना था।” प्रिया ने भी आँखें नम होते हुए कहा, “माँ, आपके आँसू मेरी जीत की बानगी हैं।”

प्रिया की यह कहानी भी माँ के निस्वार्थ प्रेम की मिसाल है, जिसमें हर कठिनाई के बावजूद माँ ने उसे आगे बढ़ने की ताकत दी।

तीसरी कहानी है सीमा की, जो एक भयंकर बीमारी से जूझ रही थी। सीमा ने अपनी बीमारी का दर्द कभी अपने बच्चों के सामने नहीं आने दिया, ताकि वे परेशान न हों। सुबह होते ही वह अपने बच्चों को हँसते-खेलते स्कूल के लिए तैयार करती और फिर अस्पताल के कमरे में जाकर दर्द की गोलियाँ लेती। शाम होते ही वह बच्चों को प्यार से खाना खिलाती, ऐसा मानो सब कुछ पहले जैसा ही चल रहा हो। सीमा के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी, पर उसके दिल में हर पल दर्द था।

एक दिन स्कूल के प्रोजेक्ट के लिए बच्चों ने माँ के चेहरे की तस्वीर बनाई, जिसमें माँ को सबसे खुशमिजाज रूप में दिखाया गया था। जब यह चित्र सीमा को दिखाया गया, तो उसकी आँखें भर आईं। उसने बच्चों को प्यार से गले लगाते हुए समझाया, ‘देखो, यह गुलाबी आसमान है, मेरी दुआएँ हैं जो तुम्हें खुश रखती हैं।’ उसी शाम बच्चों ने माँ के लिए बड़ा सा गुब्बारा लाए और फूलों से माँ का दिल खुश करने की कोशिश की। सीमा ने दर्द सहते हुए भी सभी के चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी।

समय बीतता गया और सीमा की तबीयत बिगड़ने लगी। उसकी हालत दिन-प्रतिदिन गंभीर होती चली गई और एक दिन उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। अपनी बीमारी की आखिरी लड़ाई में सीमा ने बच्चों से कहा, ‘मैं ठीक हो जाऊँगी, तुम दोनों अपनी पढ़ाई में मन लगाओ।’ बच्चे माँ के दर्द को दूर करने की जिद करने लगे, लेकिन सीमा ने अपनी आखिरी शक्ति जुटाकर उन्हें गले से लगा लिया और कहा, ‘मेरे बच्चे, माँ हमेशा तुम्हारे साथ है – तुम्हारे दिल में, तुम्हारे हर अच्छे काम में।’

सीमा की यह कहानी माँ के अटूट साहस और निस्वार्थ प्रेम का संदेश देती है, जिसमें माँ अपने दर्द को भी भूलकर सिर्फ अपने बच्चों की खुशी चाहती है।

चौथी कहानी है राधा की, जो एक छोटे से कस्बे में रहती थी। राधा की माँ सबा एक चायवाली थी। सुबह से शाम तक मंदिर चौराहे पर चाय की दुकान पर खड़ी रहती, तापमान चाहे कितना भी हो, सबा की मूरत हमेशा मुस्कान बिखेरती रहती। उसकी छोटी-सी दुकान से कभी-कभी मटर पकोड़ा और समोसे भी बिकते थे। सबा की आँखों में एक अनोखी चमक थी: एक बड़ी सी आँखों में छिपा सपना कि उसकी बेटी पढ़-लिखकर कुछ बन जाए।

राधा की पढ़ाई में मन लग गया। माँ ने अपने आराम को ताक पर रख दिया। दिनभर चाय बनाकर और सड़क पर बैठकर चाय बेचकर जो भी कमाती, उसका एक-एक पैसा राधा की किताबों पर खर्च करती। उसने राधा को हर रविवार को पुस्तकालय और टीचर से जुड़ने के लिए ले जाना शुरू किया। जब राधा को स्कूल में अतिरिक्त कोचिंग लगानी थी, तो सबा उसी माँ ने पीछे खड़ी होकर राधा को प्रोत्साहित किया। कई बार ऐसा हुआ कि दूध बर्तन पटकने पर वह गिर जाता था, पर राधा को कभी कुछ नहीं कहती, क्योंकि उसे विश्वास था कि संतान की सफलता उसके लिए सबसे बड़ी पूर्ति है।

समय बीतता गया और राधा की मेहनत रंग लाई। उसने नगर के सबसे अच्छे कॉलेज में दाखिला पाया और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। जब राधा ने दाखिला पत्र दिखाते हुए सबा से कहा कि वह आगे चलकर एक बड़ी इंजीनियर बनेगी, तो सबा की आँखों में आंसू आ गए। सबा ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटी, तेरी हर सफलता में मेरी पूर्ति है। बस तू पढ़ती जा, मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

राधा की यह कहानी माँ के त्याग और समर्थन की प्रेरणास्पद मिसाल है। सबा ने अपने आराम के सपने पीछे रख दिए, लेकिन अपने सपने को कभी नहीं छोड़ा — बेटी के सपने को पूरा करने में उसने अपनी दुनिया समर्पित कर दी।

पांचवीं कहानी है राधिका की, जो बचपन में ही विकलांग हो गई थी। उसकी माँ मधु ने कभी उसे अपनी अक्षमताओं की वजह से कमजोर नहीं समझा। मधु ने राधिका के उपचार और पढ़ाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उसने विद्वानों और चिकित्सकों की मदद से राधिका को स्वतंत्र चलने का पाठ पढ़ाया, उसे स्कूल भेजा और अपनी बेटी के सपनों को उड़ान दी। जब राधिका अपना पहला कदम बाहर चलने में सफल हुई, तो मधु की आँखों में चमक थी, जैसे उसकी पूरी दुनिया रोशन हो गई हो। सालों की मेहनत और संघर्ष के बाद राधिका ने उच्च शिक्षा पूरी की और आज राधिका समर्पित शिक्षिका बन चुकी है, जहाँ वह अन्य दिव्यांग बच्चों को आशा की किरण बनकर शिक्षा दे रही है।

मधु की यह कहानी माँ के दृढ़ विश्वास और निस्वार्थ समर्पण की प्रतीक है। उसने सिद्ध कर दिया कि माँ के विश्वास और बलिदान की कोई सीमा नहीं होती।

छठी कहानी है किरण की, जिसकी माँ एक स्कूल की अध्यापिका थीं। बचपन में जब किरण पढ़ने के लिए भारत के बड़े शहर में आई, तब उसकी माँ को पुरानी बीमारी टीबी की समस्या हुई। इस गंभीर बीमारी ने माँ को कमजोर तो कर दिया, लेकिन उसने कभी भी अपनी बेटी का हाथ नहीं छोड़ा। लंबे इलाज और अपूर्ण विश्राम के बावजूद माँ हर शाम घर वापस लौटकर किरण का होमवर्क चेक करती और उससे नए शब्द बताती। उसने अपने स्वास्थ्य की परवाह किये बिना किरण को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

एक दिन किरण ने अपने स्कूल में विज्ञान परियोजना में पहला स्थान प्राप्त किया और उसे पुरस्कार मिला। उस खुशी में उसने पुरस्कार लेकर सीधे माँ के पास गई और कहा, “माँ, यह सफलता आपकी ममता के कारण है।” माँ ने मुस्कुरा कर अपनी बेटी को पकड़ कर कहा, “मेरे बच्चे, जितना तू मेहनत करेगा, मैं उतनी ही खुश रहूंगी।” उस क्षण माँ की बीमारी और दर्द सब भूल गए।

किरण की यह कहानी भी माँ की निस्वार्थ प्रेरणा की मिसाल है। माँ ने सिखा दिया कि कठिनाई चाहे कितनी भी भारी क्यों न हो, माँ के प्यार के आगे सब कुछ सहज हो जाता है।

भारतीय संस्कृति और माँ का स्थान

भारतीय संस्कृति में माँ का स्थान अत्यंत सम्मानजनक है। प्राचीन वैदिक मंत्रों में भी माँ को देवता समान माना गया है। उदाहरण के लिए ‘मातृ देवो भव’ मंत्र हमें यह सिखाता है कि माँ को ईश्वर समान सम्मान देना चाहिए।

भारतीय लोक परंपरा में माँ को देवी के रूप में पूजा जाता है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती सहित अनेक देवी-देवताओं को माँ के स्वरूप माना गया है। दुर्गा माँ हमें साहस और शक्ति सिखाती हैं, लक्ष्मी माँ हमें समृद्धि और धर्म का ज्ञान देती हैं, और सरस्वती माँ ज्ञान की शक्ति प्रदान करती हैं। यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में माँ के सभी रूपों को अपार सम्मान मिला है।

  • मातृदेवो भव: वैदिक परंपरा का यह मंत्र हमें माँ को भगवान समान पूजने का संदेश देता है।
  • देवी स्वरूप: दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि देवी-देवताओं को माँ के रूप में माना जाने के कारण भारत में माता की पूजा अत्यंत सम्मानित है।
  • माँ भारती (मातृभूमि): हमारे देश को माँ के रूप में माना गया है। मातृभूमि हमें सुरक्षा और आत्म-गौरव की भावना देती है, जैसे एक माँ अपने बच्चों को सशक्त बनाती है।
  • महाकाव्य और कथाएँ: रामायण, महाभारत, पुराणों और लोककथाओं में माँ की भूमिका सदा ऊँची रही है, जैसे माता सीता, माता यशोदा आदि को आदर्श माता के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

इस प्रकार भारतीय संस्कृति में माँ को सर्वोच्च स्थान दिया गया है, इसलिए हम अपने जीवन में माँ को ‘देवी’ मानकर असीम श्रद्धा देते हैं।

मदर्स डे का इतिहास और इसका महत्व

मदर्स डे की शुरुआत अमेरिका से हुई। अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्ता एना जार्विस ने वर्ष 1908 में इस दिन की परिकल्पना की थी और मई के दूसरे रविवार को पहली मदर्स डे मनाया गया। 1914 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने इसे राष्ट्रीय दिवस घोषित किया और हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाने का आदेश दिया।

  • 1908: ग्रेफ्टन, वेस्ट वर्जीनिया में एक मेथोडिस्ट चर्च और फिलाडेल्फिया में मदर्स डे के दो कार्यक्रम आयोजित हुए।
  • 1914: अमेरिकी कांग्रेस ने कानून बनाकर मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में मान्यता दी।
  • विश्व में प्रसार: इसके बाद मदर्स डे धीरे-धीरे विश्वभर में लोकप्रिय हुआ। अनेक देशों में मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाने लगा।
  • भारत में: भारत में भी यह दिन पश्चिमी प्रभाव से लोकप्रिय हुआ है। आधुनिक समय में विद्यालयों और परिवारों में मई के दूसरे रविवार को माँ के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

मदर्स डे का महत्व इस बात को रेखांकित करने में है कि हमें अपनी माँ के प्रति कृतज्ञ और जागरूक रहना चाहिए। यह दिन हमें याद दिलाता है कि माँ के त्याग और प्रेम के बिना जीवन अधूरा है। मदर्स डे पर हम माँ को धन्यवाद देकर, उन्हें प्यार भरे संदेश भेजकर या कोई विशेष तोहफा देकर उनके सम्मान का उत्सव मनाते हैं। इस दिन का मुख्य संदेश यह है कि हम अपने माँ के प्रति हमेशा आदर और सम्मान दिखाएँ।

मदर्स डे पर माँ को खुश करने के रचनात्मक तरीके

मदर्स डे पर माँ के चेहरे पर मुस्कान लाने के अनेक तरीके हैं। यहाँ कुछ रचनात्मक विचार दिए गए हैं:

  • विशेष नाश्ता: सुबह-सुबह जल्दी उठकर माँ के लिए उनके पसंदीदा व्यंजन बनाएं और उन्हें पलंग पर परोसें, ताकि उनका दिन खास और आरामदायक शुरू हो।
  • हाथों से बना कार्ड या प्रेम पत्र: अपने हाथों से स्नेहभरा कार्ड या पत्र लिखकर माँ को दें जिसमें आप अपने दिल की बात लिखें। माँ के लिए शब्दों में प्यार जताना उन्हें भावुक कर देगा।
  • दिनभर के घरेलू काम: इस दिन माँ को पूरा विश्राम दें और सारे घरेलू काम खुद संभालें – खाना बनाएं, सफाई करें, कपड़े धोएं, ताकि माँ पूरा दिन आराम कर सकें।
  • यादगार वीडियो या फोटो कोलाज: माँ की पुरानी तस्वीरों या परिवार के क्षणों का एक छोटा वीडियो तैयार करें या फोटो कोलाज बनाएं। जब माँ इसे देखेंगी, तो मीठी यादें ताज़ा हो जाएँगी।
  • माँ के शौक को समय दें: माँ जो काम या शौक पसंद करती हैं, जैसे बागवानी, संगीत सुनना, किताबें पढ़ना, उसके साथ समय बिताएं। उनकी रुचि में हिस्सा लेकर उन्हें खुशी दें।
  • परिवार का विशेष प्रोग्राम: पूरे परिवार को एकत्र कर घर में माँ के सम्मान में एक छोटा-सा कार्यक्रम आयोजित करें, जिसमें बच्चे गीत या कविता प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • विशेष उपहार: माँ की पसंद का कोई उपहार दें – जैसे फूल, किताब, चॉकलेट, या कोई कपड़ा/गहना। नाम-लिपटा मग या फोटो फ्रेम जैसे व्यक्तिगत उपहार भी बहुत खास होते हैं।
  • कोई रोचक अनुभव: माँ के साथ एक दिन घूमने जाना, पिकनिक मनाना, सिनेमा में कोई फिल्म देखना, माँ के पसंदीदा भोजनालय में खाना आदि कोई भी ऐसा अनुभव है जो माँ को खुशी देगा।
  • आशीर्वाद और दुआ: माँ को उनका आशीर्वाद और अपनी दुआएँ दें। उनके पैरों में हाथ रखकर उनका धन्यवाद करें और उनसे उनका आशीर्वाद लें।
  • साथ में समय बिताना: सबसे बड़ा तोहफा है माँ को अपना समय देना। शाम की चाय पर उनकी बातें सुनें, पुराने फोटो अल्बम देखें या बस उनके साथ ध्यानपूर्वक बैठें। माँ को यह अहसास कराएँ कि आप हमेशा उनके साथ हैं।
  • विश्राम और मालिश: माँ को इस दिन अधिक आराम दें। हल्की मालिश करवाएँ, उनकी पसंदीदा तेल या क्रीम का उपयोग करें ताकि उनका तन-मन दोनों तरोताजा हो जाए।
  • संगीत और नृत्य: माँ के लिए उनका पसंदीदा गीत बजाएँ या परिवार के साथ उनके सामने एक छोटा सा नृत्य या गीत प्रस्तुत करें। इसमें माँ भी परिवार की खुशी में शामिल हो कर हँस-हँस कर आनंद लें।

माँ पर प्रेरणादायक कविताएँ और शायरियाँ

प्रेरणादायक कविताएँ

माँ की ममता है गहरी रौशनी,
उसको शब्दों में बयाँ करूँ मैं।
चाँद भी शरमाए फीका हो उसका,
जब मुस्कुराए माँ आँगन में।

सागर की लहरें सी धीरज रखी है,
आँचल से जीवन को बचाती है माँ।
हर दर्द को सहती है चुपचाप,
प्यार की सब कहानी सुनाती है माँ।

प्रेम की छाँव में पला यह आशियाना,
माँ तेरे बिना सब सुनसान होता।
तेरे आँचल के बिना सब अधूरा,
माँ, तू है तो जीवन पूरा होता।

प्रेरणादायक शायरियाँ

माँ है तो माँगी हर दुआ पूरी हो जाती है,
उसके बिन यह ज़िंदगी अधूरी-सी लग जाती है।

माँ का दिल दरिया है, प्यार उसमें बहता है,
हर सुबह उसकी दुआ से रोशन सा लगता है।

माँ की आँखें कह जाती हैं अनमोल कहानी,
उसके लबों की हँसी में बसती है ज़िंदगी रानी।

तेरी झलक में खुदा ही नजर आता है,
माँ कहलाकर उसे ही पाता हूँ।

हर खुशी की वजह माँ है, हर ख्वाब की उड़ान माँ है,
ज़िंदगी की रचना में सबसे अहम पहचान माँ है।

निष्कर्ष: माँ के सम्मान का संदेश

माँ की महिमा को शब्दों में बाँधना असंभव है, पर एक दिन जब हम माँ के नाम करते हैं तो हमें उनके प्रति अपना प्यार और कृतज्ञता जाहिर करने का मौका मिलता है। मदर्स डे सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि वह याद है कि हमें रोज़ माँ को उनकी अहमियत बतानी चाहिए। माँ की ममता में सारा संसार समाया है, इसलिए उनके सम्मान में छोटी-छोटी बातों से भी बड़ी खुशियाँ जलाई जा सकती हैं।

इस मदर्स डे पर आइए यह संकल्प लें कि हम अपने माँ के सम्मान को नए-नए आयाम देंगे। उनके अनुभव से सीखेंगे, उनकी इच्छाओं को समझेंगे और जितना हो सके उनकी सेवा में समय लगाएँगे। शब्दों से अधिक महत्वपूर्ण है अपने व्यवहार से प्यार दिखाना—माँ को गले लगाना, उनकी पसंद का खाना बनाकर खिलाना, उनकी बातों को ध्यान से सुनना, उनके लिए दुआ करना।

हर दिन माँ को धन्यवाद कहना और उनके चरणों में शीश झुकाना हमारा धर्म है। माँ ने बिना शर्त हमें अपना सब कुछ दे दिया है; अब हमारा फर्ज है कि हम उन्हें सम्मान और प्यार से दें। एक छोटी सी मुस्कान, एक कोमल स्पर्श या एक ईमानदार धन्यवाद, माँ को सच्चे प्रेम का अहसास करा देता है।

मदर्स डे न सिर्फ एक दिन है, बल्कि वह प्रेरणा है कि हमें हर रोज़ माँ की अहमियत समझनी चाहिए। माँ के बगैर हमारा अस्तित्व अधूरा है, इसलिए चलिए उनके लिए अपनी ज़िन्दगी की कहानी में सबसे पहला अध्याय बनकर साथ निभाएँ। माँ की विरासत को आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है। उनके चरणों में अपना प्यार अर्पित करते हुए हम अनंत कृतज्ञता व्यक्त करें, क्योंकि माँ ने तो हमें केवल जीवन ही नहीं, बल्कि जीने की प्रेरणा भी दी है।

एक छोटी सी मुस्कान तक माँ के दिल को खुश कर देती है, इसलिए हर पल उनके साथ रहकर उनका ख्याल रखें।

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