यह कहानी एक साधारण सी लड़की की है, जिसकी किस्मत ने उसे दुखों की राह दिखाई, लेकिन उसकी दयालुता, धैर्य और उम्मीद ने उसे राजकुमारी बना दिया। सिंड्रेला की कहानी न केवल बच्चों को प्रेरणा देती है बल्कि बड़ों को भी यह सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी यदि हम अपने गुणों पर भरोसा रखें, तो कोई भी सपना असंभव नहीं होता।
भाग 1: एक सुखद शुरुआत
बहुत समय पहले की बात है। एक सुंदर राज्य में एक नेक और धनी व्यक्ति अपनी पत्नी और छोटी सी बेटी के साथ रहता था। उसकी बेटी का नाम था एला, जो बहुत सुंदर, सौम्य और दयालु थी। उसकी माँ उसे यह सिखाया करती थीं कि जीवन में सबसे बड़ा गुण है – “दयालुता और साहस।” लेकिन एक दिन उसकी माँ गंभीर रूप से बीमार हो गईं और जल्द ही दुनिया को अलविदा कह गईं। जाते-जाते उन्होंने एला से वादा लिया – “हमेशा दयालु और बहादुर रहना।”
कुछ सालों बाद, एला के पिता ने दूसरी शादी की। नई पत्नी – लेडी ट्रेमेन – एक ठंडी और घमंडी महिला थी। उसके साथ उसकी दो बेटियाँ भी आईं – एनेस्टेशिया और ड्रिज़ेला। ये दोनों बहनें एला से जलती थीं, क्योंकि एला उनसे सुंदर और समझदार थी।
भाग 2: दुःखों की छाया
शुरुआत में सब सामान्य रहा, लेकिन फिर एला के पिता की एक व्यापार यात्रा के दौरान मृत्यु हो गई। इसके बाद एला की जिंदगी बदल गई। लेडी ट्रेमेन ने उसे नौकरानी बना दिया। उसे पूरे घर का काम करना पड़ता – सफाई, बर्तन, खाना, झाड़ू, कपड़े – और सब कुछ।
उसके कमरे से उसे निकालकर अटारी में भेज दिया गया, और नया नाम दिया – “सिंड्रेला” – क्योंकि उसके कपड़ों पर अक्सर राख लगी रहती थी।
सिंड्रेला के पास न अच्छे कपड़े थे, न आराम। लेकिन उसने अपनी माँ से किया वादा नहीं भुलाया – वह अब भी दूसरों के लिए दयालु रही, जानवरों से प्यार करती, और हर रात सितारों से अपने सपनों की बातें करती।
भाग 3: राजमहल में घोषणा
एक दिन पूरे राज्य में एक बड़ी घोषणा हुई – राजकुमार एक राजसी बॉल (नृत्य समारोह) का आयोजन कर रहा है, जहाँ वह अपने लिए एक जीवनसाथी चुनेगा। सभी युवतियों को आमंत्रित किया गया। सिंड्रेला की भी इच्छा थी कि वह जाए, लेकिन उसकी सौतेली माँ और बहनों ने उसका मज़ाक उड़ाया।
फिर भी, उसने अपने पुराने कपड़ों को खुद से सजाया और बॉल के लिए तैयार हुई। लेकिन जैसे ही वह नीचे आई, बहनों ने जलन से उसके कपड़े फाड़ दिए और माँ ने साफ़ कह दिया – “तू इस घर की नौकरानी है, कोई राजकुमारी नहीं।”
सिंड्रेला ने अकेले में रोते हुए अपनी माँ को याद किया।
भाग 4: परीमाँ की कृपा
उसी समय, एक चमकदार रोशनी के साथ एक परीमाँ (Fairy Godmother) प्रकट हुईं। उन्होंने कहा – “मेरी बच्ची, तुम्हारी दयालुता ने मुझे बुलाया है।” उन्होंने अपने जादू से सिंड्रेला को एक सुंदर राजकुमारी में बदल दिया। फटे हुए कपड़े रेशमी गाउन में बदल गए, पुराने जूते क्रिस्टल के जूते बन गए, और कद्दू एक भव्य रथ बन गया।
लेकिन एक चेतावनी थी – “रात बारह बजे से पहले वापस लौट आना, क्योंकि तब जादू खत्म हो जाएगा।”
भाग 5: राजकुमार से भेंट
राजमहल में जब सिंड्रेला पहुँची, तो सब उसकी सुंदरता और गरिमा को देखकर दंग रह गए। राजकुमार ने उसी क्षण नृत्य के लिए उसे आमंत्रित किया। दोनों ने पूरी रात साथ में नृत्य किया, बात की, और हँसे। लेकिन जैसे ही घड़ी ने 12 बजाए, सिंड्रेला को सब छोड़कर भागना पड़ा। भागते हुए एक क्रिस्टल का जूता सीढ़ियों पर गिर गया।
राजकुमार ने उसी क्षण फैसला किया – “जिस युवती का यह जूता होगा, वही मेरी रानी बनेगी।”
भाग 6: जूते की खोज
अगले दिन पूरे राज्य में एक आदेश जारी हुआ – “हर घर में जाकर इस जूते को पहनाया जाएगा।” जो भी युवती इस जूते में अपने पैर फिट कर पाएगी, वही राजकुमार की दुल्हन बनेगी।
जब यह आदेश सिंड्रेला के घर पहुँचा, तो लेडी ट्रेमेन ने उसे अटारी में बंद कर दिया। एनेस्टेशिया और ड्रिज़ेला ने बहुत कोशिश की, लेकिन जूता फिट नहीं हुआ।
इसी बीच सिंड्रेला की चूहे दोस्तों ने दरवाजा खोल दिया और वह नीचे आई। जब उसने जूता पहना, तो वह बिल्कुल फिट आया।
लेडी ट्रेमेन ने विरोध किया, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। राजकुमार स्वयं आकर सिंड्रेला को पहचान गया।
भाग 7: happily ever after
जल्द ही एक भव्य विवाह हुआ, जिसमें पूरे राज्य ने हिस्सा लिया। सिंड्रेला अब एक रानी थी – लेकिन वह वही दयालु और प्यारी लड़की रही।
राजमहल में रहते हुए भी उसने गरीबों की मदद की, जानवरों से प्रेम किया और अपनी माँ की सीख को कभी नहीं भूला।